Tuesday, November 13, 2007

सपनो का अँधा कुंवा

सपनो की हसीं दुनिया कहीं न कहीं एक अँधा कुंवा होती है ,अपने होंसलों और क्षमताओं से बढ़कर सपने भी गुनाह नहीं होते क्या ?सपनों के इस ब्लैक होल में मुमकिन है कितना कुछसमा जाये -सुख,चैन, नींद,रिश्ते ..... और भी बहुत कुछ ,जब हम वक्त के साथ बीते गुजरे पर तन्हाई में नज़र सानी करते हैं तोहाथों से फिसलती रेत दिखती है ,जो आँखों के कोरों को चुपचाप भिगो जाती हैफिर हम चुपके से अपने आँखों को इसे सुखाते हैं जैसे कोई देख भी ले तो लगेजैसे आंख मेकुछ में कुछ गिर गया था जिसे निकाल रहे हैंदरअसल ये करते हुए हम खुद को धोखा दे रहे होते हैं.

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