फैज़ अहमद फैज़ हमारे वक़्त के बहुत बडे और मुत्बर शायर हैं , उनकी नज्में भी उतनी ही खूबसूरत और मानीखेज है जितनी गज़लें , आपसे उनकी एक नज्म शेयर कर रहा हूँ-
वो लोग बहुत खुश किस्मत थे
जो इश्क को काम समझते थे
या काम से आशिकी करते थे
हम जीते जी मसरूफ रहे
कुछ इश्क किया कुछ कामकिया
काम इश्क के आड़े आतारहाऔर
इश्क से काम उलझतारहा
फिर आखिर तंगआकर
हमनेदोनो को अधूरा छोड़ दिया
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4 comments:
badhai.
samjhaiye ki samjhate samjhate sabkuch samjh jayenge, tajurbe band kijiye aur jo kare dam tok kar kare. hamari duwaye ap ke sath hain. badhai
really good....
fit for busy people like us.....
अहसास को शब्द देना ही बड़ी बात है
कुछ नज़्म कहीं कुछ ग़ज़ल कहीं
कुछ इश्क किया कुछ कामकिया
वो लोग बहुत खुश किस्मत थे
जिन्होंने जग में रह कर नाम किया
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