बशीर साहेब की एक ग़ज़ल आपकी नज़र
कभी यूँ भी आ मेरी आँख में कि मेरी नज़र को ख़बर न हों
एक रात नवाज़ दे, मगर उसके बाद सहर न हों
वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है, मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मेरी दुआ में असर न हों
* सिफ़त:
मेरे बाजुओं में थकी-थकी, अभी मह्व-ए-ख़्वाब है
न उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुज़र न हो
कभी दिन की धूप में झूम के, कभी शब के फूल को चूम
यूँ ही साथ-साथ चलें सदा कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो
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2 comments:
dushyant ji please update ur blog
beautiful lines.....
sung by JAGJIT SINGH...
U seems a huge gajal lover....
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