फैज़ अहमद फैज़ हमारे वक़्त के बहुत बडे और मुत्बर शायर हैं , उनकी नज्में भी उतनी ही खूबसूरत और मानीखेज है जितनी गज़लें , आपसे उनकी एक नज्म शेयर कर रहा हूँ-
वो लोग बहुत खुश किस्मत थे
जो इश्क को काम समझते थे
या काम से आशिकी करते थे
हम जीते जी मसरूफ रहे
कुछ इश्क किया कुछ कामकिया
काम इश्क के आड़े आतारहाऔर
इश्क से काम उलझतारहा
फिर आखिर तंगआकर
हमनेदोनो को अधूरा छोड़ दिया
Tuesday, November 13, 2007
सपनो का अँधा कुंवा
सपनो की हसीं दुनिया कहीं न कहीं एक अँधा कुंवा होती है ,अपने होंसलों और क्षमताओं से बढ़कर सपने भी गुनाह नहीं होते क्या ?सपनों के इस ब्लैक होल में मुमकिन है कितना कुछसमा जाये -सुख,चैन, नींद,रिश्ते ..... और भी बहुत कुछ ,जब हम वक्त के साथ बीते गुजरे पर तन्हाई में नज़र सानी करते हैं तोहाथों से फिसलती रेत दिखती है ,जो आँखों के कोरों को चुपचाप भिगो जाती हैफिर हम चुपके से अपने आँखों को इसे सुखाते हैं जैसे कोई देख भी ले तो लगेजैसे आंख मेकुछ में कुछ गिर गया था जिसे निकाल रहे हैंदरअसल ये करते हुए हम खुद को धोखा दे रहे होते हैं.
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